कहाँ जात हस आतो भैया,ले ले सोर पता।
अब्बड़ दिन मा भेंट होय हे,का हे हाल बता।
घर परिवार बहू बेटा मन,कहाँ कहाँ रहिथें।
नाती नतनिन होंही जेमन,बबा बबा कहिथें।
अपन कहौ हमरो कुछ सुनलौ,थोकुन बइठ जहू।
बड़ सतवंतिन आज्ञाकारी,हमरो हवय बहू।
बड़े बिहनहा सबले पहिली,भुँइ मा पग धरथे।
घर अँगना के साफ सफाई,नितदिन हे करथे।
नहा खोर के पूजा करथे,हमर पाँव परथे।
मन मा सुग्घर भाव जगाथे,पीरा ला हरथे।
हमर सबो के जागत जागत,चूल्हा आग बरे।
दुसरइया तब हमर तीर मा,आथे चाय धरे।
पानी गरम नहाये खातिर,मन चाहा मिलथे।
हमर खुशी के कहाँ ठिकाना,तन मन हे खिलथे।
जल्दी आथे ताते जेवन,नइतो देर लगे।
बुढ़त काल मा अइसे लगथे,जइसे भाग जगे।
बेटी मनके मान बढ़ावै,नवा जघा ढल के।
हे संस्कार ददा दाई के,बोली ले झलके।
अइसन बहू पाय के काबर,होवय गरब नहीं।
इँखर आय ले घर दुवार मा,गड़गे दरब सहीं।
सुखदेव सिंह अहिलेश्वर “अँजोर”
गोरखपुर,कवर्धा
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छत्तीसगढ़ी छंद अब्बड़ सुग्घर बधाई हो